Tuesday, January 12, 2021

माइक्रो फेको सफेद मोतियाबिंद यह ऑपरेशन की आधुनिक तकनीक है, जिसमें लोगों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती। -डॉ मनीषा महिंद्रा

 



महिंद्रा आई सेंटर नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ मनीषा महिंद्रा ने बताया कि टॉपिकल माइक्रो फेको आंखों के सफेद मोतियाबिंद के उपचार की एक अत्याधुनिक तकनीक है। इसमें किसी प्रकार के बड़े चीरे की आवश्यकता नहीं होती। ऑपरेशन की इस विधि के दौरान आंख में महज 2.8 एमएम का एक बारीक छेद किया जाता है, जिसके माध्यम से सफेद मोतिया को आंख के अंदर ही घोल दिया जाता है और इसी के माध्यम से ही फोल्डेबल लेंस को आंख के अंदर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। सामान्य ऑपरेशन आंख के आसपास इंजेक्शन लगाकर उसे सुन्न करके किया जाता है, ताकि आंख स्थिर रहे। इससे मरीज को दर्द भी होता है और इंजेक्शन से कुछ नुकसान भी हो सकता है। टॉपिकल माइक्रो फेको बिल्कुल आधुनिक तकनीक है। इसमें किसी प्रकार का इंजेक्शन नहीं लगाया जाता। केवल ऊपर से कुछ बूंद दवा डालकर ऑपरेशन शुरू कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि इस ऑपरेशन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बिना दर्द हुए इस ऑपरेशन के बाद मरीज को किसी प्रकार की पट्टी भी बांधनी नहीं पड़ती और वह ऑपरेशन के तुरंत बाद देखने लगता है मरीज को अस्पताल से तुरंत छुट्टी भी दे दी जाती है और किसी प्रकार का परहेज भी जरूरी नहीं इससे निश्चित रूप से मरीजों को लाभ मिलेगा।

Sunday, January 10, 2021

Chronic Kidney Disease ले सकती है जान, ऐसे करें बचाव डॉ राजन इसक

 

क्रॉनिक किडनी डिजीज होने पर व्यक्ति की दोनों किडनियों के फेल होने के साथ ही जान जाने का खतरा रहता है, इसलिए बेहतर है कि कुछ सावधानियां बरतते हुए इस स्टेज पर पहुंचने से रोका जाए।

क्रॉनिक किडनी डिजीज वह स्थिति है जब व्यक्ति की दोनों किडनियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। इस बीमारी का सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि इससे पीड़ित व्यक्ति को तब तक इसके लक्षणों का एहसास तब होता है जब किडनी की कार्यक्षमता 25 प्रतिशत तक गिर चुकी होती है। इस बीमारी के कारण शरीर में से टॉक्सिन्स व अन्य पदार्थ फिल्टर नहीं हो पाते हैं, ऐसे में शरीर में ये जमा होने लगते हैं जो बाकी के अंगों पर भी असर डालते हैं। यह व्यक्ति के लिए और घातक स्थिति पैदा कर देते हैं। किडनी फेल होने की स्थिति में डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट का सहारा लेना पड़ता है। कैसे बचें

 

* ब्लड प्रेशर डायबीटीज किडनी की बीमारी की बड़ी वजह होते हैं। ऐसे में बीपी और शुगर की मात्रा को कंट्रोल करें।

 

* खून में क्रिएटिनीन की जांच और यूरीन की जांच समय-समय पर करवाएं ताकि बीमारी को शुरुआती स्टेज में पकड़ा जा सके।

परिवार में यदि कोई पहले इस बीमारी से पीड़ित रह चुका है तो ज्यादा अलर्ट रहें।

* वजन को नियंत्रित रखें। ज्यादा मोटापा किडनी के फंक्शन पर भी असर डालता है जो बीमारी का रूप ले सकता है।

* व्यायाम को जीवनशैला का हिस्सा बनाएं। रोजाना करीब 30 मिनट एक्सर्साइज जरूर करें इससे किडनी को टॉक्सिन्स फिल्टर करने में मदद मिलेगी और उस पर पड़ने वाला दबाव कम होगा

* सब्जियों, सलाद और फलों को अपनी डायट का हिस्सा बनाएं।

 

* फास्ट फूड ज्यादा तेल-मसाले की चीजों को खाने से बचें।

 

* चीनी और नमक की मात्रा को नियंत्रित करें।

* रोजाना पर्याप्त पानी जरूर पीएं। पानी की कमी किडनी के फिल्टर सिस्टम पर बुरा असर डालती है, इसलिए लिक्विड इनटेक बनाए रखें।

 

* सिगरेट, तंबाकू, शराब आदि नशे से दूरी रखें।

Saturday, January 9, 2021

जानिए आँखों की लेज़र सर्जरी के बारे में! -डॉ मनीषा महिंद्रा

 

जानिए आँखों की लेज़र सर्जरी के बारे में! -डॉ मनीषा महिंद्रा

आज के बदलते लाइफस्टाइल के साथ हर किसी की आँखों की रोशनी पर गहरा असर पड़ता दिखाई दे रहा है। एक समय था, जब चश्मा बढ़ती उम्र के लोगों को लगता था लेकिन अब 5 साल के बच्चों को भी चश्मा लग जाता है। लेकिन घबराने की कोई बात नहीं हैं क्योंकि साइंस ने इसका भी इलाज निकाल लिया है। 18 साल की उम्र के बाद आँखों का ऑपरेशन या सर्जरी करावा सकते हैं, जिसके बाद बिना चश्मे के देख पाना संभव होगा। इस सर्जरी का नाम है लेसिक।




लेसिक सर्जरी क्या है?

किसी भी व्यक्ति को आँखों की रोशनी से जुड़ी किसी भी तरह की समस्या हो जैसे कि दूर या पास का दिखाई देने पर चश्मे का प्रयोग करना या लेंस लगाना आदि। उन व्यक्तियों के लिए लेसिक सर्जरी की जाती है, जिससे उनकी आँखों पर लगा चश्मा या लेंस हमेशा के लिए उतर जाएँ। लेकिन जिन लोगों की नज़र अधिक कमज़ोर होती है उनके लिए यह सर्जरी उपयोगी नहीं है।

लेसिक सर्जरी की प्रकिया क्या है?

लेज़र सर्जरी की प्रक्रिया में कुल 15 मिनट लगते हैं और व्यक्ति को 1 से 2 घंटे तक ही अस्तपताल में रहना होता है। इस प्रक्रिया को करने का तरीका कुछ इस प्रकार है-

सबसे पहले व्यक्ति की आँखों में आई-ड्राप डालकर सुन्न किया जाता है और एक दवाई खाने को दी जाती है।

डॉक्टर व्यक्ति की पलकों की झपकने की प्रक्रिया को रोकने के लिए लिड स्पेकुलम (उपकरण का नाम) का इस्तेमाल करते हैं।

फिर आँखों को स्थिर रखने के लिए एक डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं जिससे व्यक्ति को आँखों पर हल्का दबाव महसूस हो सकता है।

आँखों के कॉर्निया में एक फ्लैप बनाकर, उसमें कंप्यूटर नियंत्रित एक्सीमर लेज़र को सीधा आँखों पर प्रकाश स्पंदित किया जाता है।

फिर कॉर्निया को दोबारा से आकृति में लाया जाता है।

आखिर में सर्जन कॉर्निया फ्लैप को फिर से स्थापित करते हैं और यह कुछ ही घंटों में ठीक होना शुरू हो जाता है।

लेज़र सर्जरी के फायदें-

आँखों की रोशनी बेहतर रूप से काम करती है।

इस सर्जरी के समय व्यक्ति को दर्द बेहद कम होता है।

सर्जरी के बाद व्यक्ति की आँखों की रोशनी तुरंत या एक दिन बाद ही पहले से बेहतर हो जाती है।

लेज़र सर्जरी के बाद बढ़ती उम्र में जल्दी आँखों की रोशनी पर प्रभाव नहीं पड़ता।

यह सर्जरी पूरी तरह से सुरक्षित है।

लेज़र सर्जरी के पहले और बाद में रखें सावधानियां-

सर्जरी के 1 हफ्ते पहले से पहने लेंस।

सर्जरी के दो हफ्तों तक स्विमिंग, स्कूबा ड्राइविंग आदि करें।

कोशिश करें कि 2 हफ्तों तक धूल आदि आँखों में जाए।

महिंद्रा नेत्र केंद्र

पाहवा धर्मशाला के पास

लुधियाना

 

 

 

सीएमसी डॉक्टर ने 1 दिन की बच्ची को बचाया और साबित किया कि "डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं"

                       लुधियाना (द पंजाब न्यूज एचएस किट्टी)   25 फरवरी 2023 को अस्पताल के बाहर एलएससीएस द्वारा कुछ घंटे की नवजात बच्ची का...